काले कानूनों की वापसी किसान आंदोलन की बड़ी जीत, प्रदेश के इतिहास में कभी ऐसी सरकार नहीं आई, किसानों- बागबानों की मांगों पर नहीं दे रही ध्यान, विधानसभा चुनावों में देंगे जवाब: सयुंक्त किसान मंच


शिमला  टाइम

किसानों के दबाव में मोदी ने काले कानूनों को वापिस लेने की घोषणा की है। आजादी के बाद यह दूसरा बड़ा आंदोलन है जिसमे सात सौ किसानों ने जान की कुर्बानी दी है यह बात शिमला में सयुंक्त किसान मंच ने शिमला में कही। मंच ने साफ कर दिया है कि जब तक कानून को संसद में निरस्त नहीं किया जाता है व एमएसपी पर कानून नही बनता है तब तक आंदोलन जारी रहेगा।
सयुंक्त किसान मंच के सयोंजक हरीश चौहान ने शिमला में पत्रकार वार्ता के दौरान कहा कि इस आंदोलन के दौरान अनेक तमगे किसानों को दिए गए लेकिन किसानों ने हार नही मानी। उन्होंने मोदी सरकार से सवाल किया है कि इस आंदोलन में 700 लोगों की शहादत को सरकार क्या पहले रोक नही सकती थी। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने संबोधन में कहा कि सरकार किसानों को समझा नही पाई लेकिन वास्तविकता में किसान तो पहले ही समझ गया था लेकिन प्रधानमंत्री नही समझ पाए थे। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के समझने के बाद अब प्रदेश के मुख्यमंत्री की बारी है। उपचुनाव में चार सीट हारे हैं लेकिन 2022 के चुनाव सामने है। उन्होंने कहा कि किसानों ने 15 सूत्रीय मांगपत्र मुख्यमंत्री को सौंपा था लेकिन किसानों की मांग पर प्रदेश सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया है। राज्य सरकार के पास किसानों को बुलाने तक का समय नहीं है। प्रदेश के इतिहास में कभी ऐसी सरकार नहीं आई। 
उन्होंने कहा कि कश्मीर के तर्ज पर सेब MIS पर खरीदने की मांग लंबे समय से उठाई जा रही है। हरीश चौहान ने कहा कि वह भी भाजपा आरएसएस के संगठन से जुड़े हैं लेकिन वह शुरू से जानते थे कि यह कानून काले है।
वन्ही उन्होंने कहा कि प्रदेश में किसानों को खाद की भारी कमी है। किसानों को कहीं भी खाद नही मिल रही जहां मिल रही है वह महंगी है। उन्होंने कहा कि खाद पर सब्सिडी के सारे दावे हवा हो गए हैं सरकार को इस पर गौर करने की जरूरत है।
वन्ही उन्होंने कहा कि भूमि अधिग्रहण में जो मुवावजा मिलता है वह दूसरे प्रदेशों की तुलना में काफी कम है। इसको लेकर सयुंक्त किसान मंच भूमि अधिग्रहण प्रभावित मंच के साथ मिलकर 14 दिसम्बर  को विधानसभा  के शीतकालीन सत्र का घेराव करेगी।

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