ये तो हमारी संस्कृति न थी- प्रशासन को डर है तो “मैं करूंगा कोरोना मृतकों का दाह संस्कार”

शिमला टाइम

देव भूमि कहे जाने वाले हिमाचल की इस धरा पर किस तरह की संस्कृति और परम्पराओं का निर्वहन किया जा रहा है। बीमार, लाचार, बेबस लोग न अपनों के हो पा रहे हैं न सरकार और प्रशासन के। प्रशासन के पास तंत्र है व्यवस्था है समाधान भी है। फिर ऐसी लाचारी क्यों? अगर बेबसी है तो फिर परिजनों को सौंप देते शव, यूं लावारिस घोषित कर खुद को हिन्दू धर्म की सरंक्षक, संस्कृति और परम्परा की निर्वाहक, केसरी ध्वज बन्दन करने वाले भाजपा की जयराम सरकार में ऐसी निकृष्ट और हर शख्स को झकझोर देने वाली ऐसी घटना वो भी सरकार, शासन और प्रशासन की नाक तले शिमला में कतई न होती। अब कार्रवाई करने की बजाय लीपापोती कर मामले को इस तरह रफ़ा दफा किया जा रहा है मानो कुछ हुआ ही न हो केवल मात्र नदी तट पर रेत पर लकड़ी के टुकड़े से कुछ लिखा हो और लहर ने उसे मिटा दिया हो। लेकिन लकड़ी के वही टुकड़े जो चिता पर एक नौजवान युवक के शव को पंच तत्व में विलीन करने के लिए रखे गए थे वो भी मानो सहम से गये थे और अग्नि को बुझा कर मानों चित्कार कर रहे हो कि आखिर आधी रात को बिना धर्म कर्म के इस तरह किसी को दुनिया से विदा करना क्या जायज़ है…? यही सब जब सोशल मीडिया पर देवेन भट्ट ने लाइव देखा तो उनकी आत्मा भी सिहर उठी और मन में ख्याल आया कि देव भूमि में ये घटना तो हो चुकी लेकिन अब आगे किसी को इस तरह अंतिम विदाई न मिले। प्रण कर लिया कि वह खुद बीड़ा उठाएंगे और विकट परिस्थिति में अपनी जान दांव पर लगाकर भी सनातन धर्म नियमों और कर्मों के साथ जब कभी भी जरूरत होगी तो ऐसे शवों को अंतिम संस्कार निसंकोच करेंगे। ताकि मृतक की आत्मा को सदगति मिले, मोक्ष प्राप्त हो क्योंकि इस युवा ने भी कोई पाप नहीं किया था, दुर्भाग्यवश कोरोना नामक इस महामारी के संक्रमण का शिकार ही हुआ था। सरकार व प्रशासन की लचर कार्य प्रणाली से आहत होकर कोरोना महामारी से मरने वालो के दाह संस्कार को शिमला अनाडेल का ये युवक आगे आया है। पेशे से अधिवक्ता देवेन भट्ट ने कहा है कि यदि प्रशासन को डर लगता है तो उन्हें पीपीई किट उपलब्ध
करवाएं कोरोना मृतकों के दाह संस्कार व कर्म कांड पूरे विधि विधान से वह स्वयं करेंगे। मगर किसी की देह को लावारिस छोड़े यह हिमाचल की संस्कृति नहीं है। ऐसे समय में जब मृतक के घर वाले रिश्तेदार उस का दाह संस्कार करनें में असमर्थ है तो देवेन भट्ट ऐसी जिम्मेदारी निभाने को तैयार हैं।

आलम यह है कि कोरोना पीड़ित मंडी सरकाघाट का 21 वर्षीय युवक के शव का जिस तरह तिरस्कार हुआ। परिजनों को तो अंतिम संस्कार की मंजूरी नहीं मिली। प्रशासन ने भी ऐसी बेकद्री और अमानवता दिखाई कि घर परिवार वाले युवक के शव को लावारिस घोषित किया सो किया। मगर दाह संस्कार की जिम्मेदारी से भी ऐसे पल्ला झाड़ा की आधी रात को युवक का शव डीजल से जला दिया। शव को लेकर इतनी राजनीति हुई कि नगर निगम व जिला प्रशासन के बीच आपस में ही ठन गई। जिसके बाद सीएम को भी कहना कि भविष्य में ऐसी अव्यवस्था नहीं होगी मगर कार्रवाई किसी पर नहीं हुई।
संवेदनशील घटना के बाद जहां सरकाघाट के लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया है। वहीं कई सामाजिक संस्थाएं भी इस घटना का खुल कर विरोध कर रही है। क्योंकि सनातन संस्कृति में ऐसी उपेक्षा के लिए कोई स्थान नहीं। उधर स्वाभिमान पार्टी ने भी इस घटना का विरोध करते हुए पूछा है कि ऐसी कौन सी आपातकालीन स्थिति थी जिसके कारण सुबह 4:00 बजे से लेकर शाम 7:00 बजे तक अंतिम दाह संस्कार करने की बजाय मध्य रात्रि को क्यों किया गया? ऐसे ही सवाल समाज के अन्य लोगों में उठ रहे हैं। 

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