शिमला टाइम
देश भर में आज मुस्लिम समुदाय के लोग ईद उल जुहा मना रहे हैं। परन्तु कोरोना के चलते मुसलमानों का ये पर्व फीका ही रहा। शिमला में भी ये पर्व मनाया गया और लोगों ने अपने घरों में रहकर ही इस पर्व को मना रहे हैं। शिमला की जामा मस्जिद में भी आज ईद-उल जुहा यानी बकरीद का पर्व फ़ीका ही रहा। जहां बकर ईद पर भारी भीड़ जमा हुआ करती थी वह आज खाली- खाली था।
शिमला के मिडल बाजार में स्थित मस्जिद के मौलवी मुफ़्ती मोहमंद शफीक कासमी ने बताया कि इस साल कोरोना के चलते हालात एकदम अलग हैं। पूरी दुनिया कोरोना वायरस की महामारी से जूझ रही है। ऐसे में सभी लोगों से घर से ही नवाज़ अदा करने की अपील की गई। उन्होंने कहा कि इस दिन हज़रत मोहमद ने अपने बेटे की कुर्बानी दी थी। उस कुर्बानी को याद कर इस पर्व को मनाया गया है।
ईद-उल जुहा यानी बकरीद मुसलमानों का दूसरा सबसे बड़ा पर्व  है। दोनों ही पर्वो  पर ईदगाह और मस्जिदों में विशेष नमाज अदा की जाती है। ईद-उल जुहा पर बकरे या दूसरे जानवरों की कुर्बानी दी जाती है।

इस्लाम की मान्यता के अनुसार, कहा जाता है अल्लाह ने हजरत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी थी। हजरत इब्राहिम अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे, लिहाजा उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया। अल्लाह के हुक्म की फरमानी करते हुए हजरत इब्राहिम ने जैसे ही अपने बेटे की कुर्बानी देनी चाही तो अल्लाह ने एक बकरे की कुर्बानी दिलवा दी। कहते हैं तभी से बकरीद का त्योहार मनाया जाने लगा। इसलिए ईद-उल-अजहा यानी बकरीद हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में ही मनाया जाता है।









