स्वतंत्रता का जश्न मनाना आसान मगर स्वतंत्रता की रक्षा करना बहुत कठिन: प्रो. कपिल कपूर

शिमला टाइम

 भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (एडवांस्ड स्टडी) में शुक्रवार को ’गुरु तेग बहादुर- द ग्रेट रिडीमर लाइफ, फिलास्फी एण्ड मार्टर्डम’ विषय पर त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का दीप प्रज्ज्वलन के साथ शुभारंभ हुआ। संगोष्ठी के संयोजक पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के इंटेलिजेंस ब्यूरो के प्रमुख डा. मनमोहन सिंह ने इस संगोष्ठी की भूमिका और महत्व के बारे में अपने उदबोधनधन में कहा कि 9वें सिख गुरु तेग बहादुर की शहादत का कोई तुलना नहीं है।  

बीज भाषण प्रस्तुत करते हुए केन्द्रीय विश्वविद्यालय पंजाब, भटिंडा के कुलाधिपति प्रोफेसर जगबीर सिंह ने कहा कि गुरु तेग बहादुर महान मुक्तिदाता, जीवनदाता और परामर्शदाता थे। वे प्राचीन जीवंत शैली के प्रतीक हैं और गुरु परंपरा में उनका महत्वपूर्ण स्थान है। वे एक क्रांतिकारीधर्म-प्रर्वतक थे और धर्म-दर्शन के इतिहास में उनका अद्वितीय स्थान है। श्रेष्ठ मानवीय मूल्य स्थापित करने में भी उनका उल्लेखनीय योगदान रहा है। इतना ही नहीं उन्होंने मुगल शासन की अमानवीय कृत्यों एवं दमनकारी नीतियों तथा धार्मिक असहनशीलता के विरुद्ध आवाज उठाई। 

संस्थान के उपाध्यक्ष एवं कार्यवाहक निदेशक प्रोफेसर चमन लाल गुप्त ने कहा कि गुरु तेग बहादुर का पूरा जीवन, जीवन के श्रेष्ठ मूल्यों को स्थापित करने में व्यतीत हो गया। उन्होंने कहा कि आज जीवन मूल्यों की निर्मिति और उनके प्रति निष्ठा बहुत आवश्यक है। यदि जीवन दृष्टि विकसित नहीं होती तो विश्व दृष्टि उपकारी नहीं हो सकती। गुरु तेग बहादुर सहित सभी सिख गुरुओं की वाणी में समस्त ज्ञान समाहित है। इन संतों ने स्वयं भी ज्ञान अर्जित किया और अर्जित ज्ञान को दुनिया में प्रकाशमान किया।  

संस्थान के अध्यक्ष प्रोफेसर कपिल कपूर ने कहा कि ’सत श्री अकाल’ शब्दों में भारतीय दर्शन का मूल मंत्र छिपा है। उन्हांेने कहा कि प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव के शुभारंभ सर्वप्रथम गुरु तेग बहादुर को श्रद्धा सुमन अर्पित कर किया है।

 उनकी इसी प्रेरणा से भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान ने भी धर्म के संस्थापक तथा रक्षक गुरु तेग बहादुर के अकथनीय बलिदान को रेखांकित करने के उद्देश्य से इस राष्ट्रीय विचार गोष्ठी के आयोजन का  निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि विभिन्न उपविषयों पर केन्द्रित इस संगोष्ठी में प्रस्तुत शोधपत्रों को लिपिबद्ध कर एक पुस्तक तैयार की जाएगी। अपने वक्तव्य में प्रोफेसर कपूर ने चिंता जाहिर की कि नई पीढ़ी को स्वतंत्रता का अर्थ समझने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता का जश्न मनाना आसान है मगर स्वतंत्रता की रक्षा करना बहुत कठिन है। 

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