शिमला टाइम

उत्तरकोशला की राजधानी अयोध्या जिसे अवध और साकेत भी कहते है तथा जो तीर्थ-रूपी विष्णु का मस्तक कही गयी है और इस अयोध्या की गणना इस धरा के सात तीर्थो में प्रथम है होती है, यथा- अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवन्तिका। पुरी द्वारावती चैव सप्तेता मोक्षदायिकाः। अयोध्या का सौन्दर्य ब्रम्हलोक के सौन्दर्य व छटा पर विजय पताका फहरा रहा था जिसका उल्लेख मिलता है कि -अयोध्यानगरी रम्या सर्व्वलक्षणसंयुता। जितब्रम्हपुरी साक्षाद्वैकुण्ठ इव विश्रुता। ‘‘वह नगरी जिसके समक्ष ब्रम्हलोक की मनोहरता फीकी पड़ती थी, उस नगरी के अधिपति राम को उनकी जन्मभूमि ‘‘रामकोट मंदिर‘‘ से शैतान लुटेरा मुस्लिम आक्रांता शासक बाबर ने हजारों साधु-सन्यासियों व रामभक्त नागरिकांं का खून बहाकर सन 1528 में विध्वंस कर कब्जा किया और अपने पुरूषप्रेमी बाबरी के नाम से मस्जिद बनवाकर जिस बर्बरता का परिचय दिया, आज उस खूनी बर्बर और अन्यायी बादशाह की पहचान हटने के साथ भव्य भगवान रामलला के मंदिर बनने के साथ 496 साल बाद रामलला अवधपुरी के अपने पुराने जन्मभूमि स्थल के नये भव्य विशाल भवन में 22 जनवरी 2024 को विराजित हो रह है। अवधपुरी में रामलला के विराजित होने का महोत्सव को भव्यतम स्वरूप दिए जाने में समूचा देश अपने पलक पॉवने बिछाए तैयार है, जिसकी गूंज दुनियाभर के देशों में है और विश्व के अनेक देशों में करोड़ों श्रद्धालुओं द्वारा यह पावन अवसर का यादगार बनाए जाने की तैयारी है ताकि 496 सालों की अंधियारी रातों का अंधेरा ऐसा गायब हुआ कि इस राजवंश के निवास स्थान तथा सूर्यवंश से उत्पन्न रामलला के जन्मस्थान मंदिर अपने आप में एक भव्य तीर्थ बन गया जिसकी प्रशंसा एवं भक्ति में हर व्यक्ति अयोध्या की रज को अपने मस्तक पर लगाए जाने हेतु अयोध्या की ओर भाग रहा है।

अयोध्या का एतिहासिक पहलु- वाल्मीकि रामायण में कौशल का वर्णन मिलता है -कोसलो नाम विदितःस्फीतो जनपदों महान। निविष्टः सरयूतीरे प्रभूतधनधान्यवान।‘‘ अर्थात सरयू के किनारे धनधान्यवान देश कौशल है ‘‘निविष्ट‘‘ शब्द का अभिप्राय यह कोशल सरयू के दोनों किनारों पर बसा है। उत्तरकोशला की राजधानी अयोध्या तीर्थो में पहली पुरी है। विष्णु के मस्तक से सुशोभित अयोध्या के विषय में उल्लेख मिलता है कि -‘विष्णोः पादमवन्तिकां गुणवतीं मध्ये च कांचीपुरीन। नाभिं द्वारवतीन्तथा च हृदये मायापुरी पुण्यदाम्। तीर्थराज प्रयाग, मुक्तिदायिनी विश्वनाथपुरी काशी इसी कोशला में है। इसी कोशला में अयोध्या के राजा भगीरथ कठिन परिश्रम से गंगा को पृथ्वी पर लाए थे तथा 24 तीर्थकरों में से 22 इक्ष्वाकुवंशी थे जिनमें पहले तीर्थकर आदिनाम ऋषभदेव सहित चार अन्य तीर्थकरों का जन्म इसी अवध में हुआ था। शाक्य मुनि की जन्मभूमि कपिलवस्तु और निर्वाणभूमि कसियो कोशला में थे और इसकी राजधानी अयोध्या में उन्होंने अपने धर्म की शिक्षा दी और सिद्धान्त बनाए जो जगप्रसिद्ध हुए जिसे बौर्द्धमत वाले आकांक्षा करने के साथ निर्माण नाम देते है।
वाल्मीकि रामायण में अयोध्या की तुलना उससमय मृत्युलोक की अमरावती से बढ़कर करते हुए कहा गया है कि भूमण्डल की सबसे पहली लोकप्रसिद्ध राजधानी स्वयं आदिराज महाराज मनु ने बसाई थी जिसका विस्तार अडतालीस कोस लम्बी और बारह कोस चौड़ी थी देखें-‘‘अयोध्या नाम तत्रास्ति नगरी लोकविभूता। मनुना मानवेन्द्रण पुरैव निर्मिता स्वयंम्। आयता दश च द्वे च योजनानि महापुरी। श्रीमति त्रीणि विस्तर्णा नानासंस्थनशोभिता।‘‘ इस वर्णन मेंनगरमात्र का उल्लेख मिलता है जिसमें राजमहल वा दुर्ग पृथक रहे है। ‘‘अयोध्या‘‘ नाम की सार्थकता में कहा गया है ‘जिसे शत्रु जीत न सके, वहीं अयोध्या है। अयोध्या नगरी के वर्णन में वाल्मीकि ‘‘दुर्गगम्भीर-परिखा‘‘ विशेषण देते है वहीं स्वामी रामानुजाचार्य ने व्याख्या की है कि-जल दुर्गेण गम्भीरा अगाधा परिखा यम्याम्। जिससे समझा जा सकता था कि अयोध्या जलदुर्ग से पूर्णतया सुरक्षित थी।


तब रामराज्य में अयोध्या नगरी के मार्गो का सुन्दर ओर स्पष्ट वर्णन में उल्लेख मिलता है कि नगर के चारों ओर सैर करने के मार्ग महापथ कहलाते थे एवं राजप्रसाद महल के मध्य भाग के चार द्वार थे जो सभी ओर से शोभित राजमार्ग कहाते थे। अवधपुरी को सुवासित किए जाने हेतु प्रतिदिन राजपथ ,महापथ ही नहीं अपितु नगर के मोहल्लों में सुगंधित पुष्पों की वर्षा की जाती थी देखें- मुक्तपुष्पावकीणन जलस्किन नित्यशः।

जब भी अवधपुरी में कोई विशेष उत्सव होता तब सर्वत्र चंदन के जल का छिडकाव होता और कमल तथा उत्पल सब जगह शोभित किए जाथे थे। मार्ग और सड़कों पर रात्रिके समय दीपक का प्रकाश राजकीय प्रबन्ध से किया जाता था, राम राज्याभिषेक की पहली रात्रि को भी सभी मार्गोमें दीपकवृक्ष लगाकर अवधपुरी को दिनमान जैसा रोशन किया गया था।यथा- प्रकाशीकरणार्थश्च निशागमनशंक्ख्या। दीपवृक्षांस्तथा चक्रुरनुरथ्यासु सर्व्वशः।ऐसे उत्सव के समय मार्ग के दोनों और पुष्पमाला,ध्वजा और पताका लगायी गयी। राजमार्ग के दोनों और सुन्दर सजी सजाई नाना प्रकार की दुकानें शोभायमान थी। इसके सिवाय कहीं उच्च अटटालिका सुसमृद्ध चारू दृश्यमान बाग थे, कहीं वाणिज्यागार और कहीं भूधर-शिखर सम देव निकेतन पुरी की शोभा बढ़ा रहे थे जिसका वर्णन स्वयं ब्रम्हा भी नहीं कर सकते थे।

आज 496 सालों बाद अवधपुरी में मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम अपने बालरूप में जन्मस्थान पर विराजमान होने जा रहे है। वाल्मीकि जी के अनुसार रामराज्य में जिस तरह अयोध्या वासी धर्मपरायण, जितेन्द्रिय, साधु और राजभक्त थे, चार वर्ण के लोग अपने अपने धर्म में स्थित थे, सभी हष्ट, पुष्ट, तुष्ट,अलुब्ध और सत्यवादी थे, नारियॉ धर्मशीला और पतिव्रता थी, आज के सन्दर्भ में भले ही वाल्मीकि जी की ये सभी बातें कल्पनामयी हो किन्तु राम के प्रति आस्था, राममंदिर निर्माण के बाद उनके श्रीविग्रह की प्राणप्रतिष्ठा ने पूरे राष्ट्र में राम के प्रति जो अलग जगायी है, वह ज्योति पूरे राष्ट्र में प्रज्वल्वित हो चुकी है और लोगों के मन में रामजन्मभूमि पर स्थापित राममंदिर उनकी श्रद्धा एवं आस्था का केन्द्र बन चुका है। देश राममय हो गया है, हर नगर, हर गॉव में राम के आगमन का स्वागत में ध्वाजाओं से मनोहारी सजावट हो रही है। यह अलग बात है कि धर्मध्वाजावाहक शंकराचार्यो के मतानुसार वैदिक परम्पराओं एवं सनातन धर्म की मान्यताओं का पालन न होने से यह राजनीति की बिछात समझकर उपेक्षित किया जा रहा है, परन्तु आस्था, श्रद्धा और भक्ति का सागर इन सारे तर्को को दरकिनार कर 22 जनवरी को रामलला की घर वापसी का भव्यता से स्वागत हेतु अपने पलक पॉवड़े बिछाए इन पलों की प्रतीक्षारत है।

लेखक

डॉ मामराज पुंडीर

शिक्षक हैं

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