नई शिक्षा नीति लागू करने वाला देशभर में पहला राज्य बना हिमाचल प्रदेश
शिमला टाइम
प्रदेश सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति को प्रदेश में लागू करने की मंजूरी देने के साथ ही हिमाचल प्रदेश देशभर में नई शिक्षा नीति को लागू करने वाला पहला राज्य बन गया। कुछ दिन पहले शिक्षा मंत्री गोविंद ठाकुर ने भी नई शिक्षा नीति पर अपनी सकारात्मक राय रखते हुए साफ़ कहा था कि हिमाचल प्रदेश देशभर में पहला ऐसा राज्य होगा जो नई शिक्षा नीति को लागू करेगा। 34 साल के लंबे अंतराल व लगभग दो लाख सुझाव मिलने के बाद केंद्र सरकार ने 29 जुलाई को नई शिक्षा नीति पर मोहर लगा दी। किसी भी देश व देशवासियों के संपूर्ण विकास की बुनियाद शिक्षा ही होती है। इसी बुनियाद को मजबूत करने के लिए नई शिक्षा नीति 10+2 के फार्मेट को पूरी तरह खत्म करते हुए 5+3+3+4 के आधार पर देश भर में लागू होगी। बच्चों में मौलिकता को बनाए रखने के लिए शिक्षा नीति में सरकारी व निजी विद्यालयों में भारतीय भाषाओं के माध्यम से पढ़ाई पर जोर दिया गया है। अभी तक हमनें अपनी स्थानीय भाषाओं को अपने हाल पर ही छोड़ रखा था, नई शिक्षा नीति से भारत की भाषाएं आगे ही नहीं बढ़ेंगी बल्कि ज्ञान भी बढ़ेगा और राष्ट्रीय एकता को बल भी मिलेगा।
वैश्विक दृष्टि से देखा जाए तो जापान ,सिंगापुर, हांगकांग ,चीन आदि की शिक्षा प्रणाली हमारे देश से कहीं बेहतर है। जापान आज अपनी शिक्षा प्रणाली के कारण ही विश्व में शिक्षा का गुरु कहलाता है। वहां की शिक्षा प्रणाली 6+3+3+4 पर आधारित है, 6 साल प्राथमिक शिक्षा, 3 साल जूनियर हाईस्कूल, 3 साल सीनियर हाईस्कूल और 4 साल यूनिवर्सिटी। वहां नैतिकता व तकनीकी शिक्षा पर जोर दिया जाता है। भारत की नई शिक्षा नीति में भी इसी तरह का ऐतिहासिक बदलाव हुआ है। जिस 5+3+3+4 फार्मेट की बात इस नीति में की गई है उसके अनुसार पहले पांच वर्षों तक 3 से 8 साल तक की आयु के बच्चे प्राईमरी से लेकर दूसरी कक्षा पूरी करेंगे। इसे फाउंडेशन स्टेज कहा है, पहले तीन साल बच्चे आंगनबाड़ी में प्री-स्कूलिंग शिक्षा लेंगे इसके बाद दो साल बच्चे स्कूल में पहली व दूसरी कक्षा पूरी करेंगे। इस स्टेज में पठन-पाठन के परम्परागत बोझ से अलग पाठ्यक्रम होगा जो क्रियाकलाप आधारित शिक्षण से युक्त होगा, इसके बाद आएगी प्रीप्रेटरी स्टेज जिसमें 11 साल तक के उम्र के बच्चे कक्षा तीन से पांच तक विज्ञान, गणित व कला आदि विषयों की पढ़ाई करेंगे। नई शिक्षा नीति में बचपन को बचाते हुए आगे बढ़ने की बात कही गई है। मिडिल स्टेज में 11-14 साल की आयु के बच्चे कक्षा 6-8 तक विषय आधारित पाठ्यक्रम की पढ़ाई करेंगे। इसी चरण में कक्षा 6 से कौशल विकास आधारित शिक्षा प्रदान करने का भी प्रावधान है जैसे बढ़ईगिरी, बागवानी, बिजली का काम, मिट्टी के बर्तन बनाना आदि ऐसे कौशल विकसित करना जिससे हाथों से काम करने का अनुभव प्राप्त हो। मिडिल स्टेज में कक्षा 6-8 के दौरान दस दिन बस्ता रहित पीरियड में यह शिक्षा दी जाएगी। 2025 के अंत तक नई शिक्षा नीति के अंतर्गत कम से कम 50% छात्रों को वोकेशनल स्टडीज पढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
“मैंने शिक्षण के दौरान कक्षा 6-8 में पढ़ने वाले बच्चों में देखा है कि हर बच्चा अपने आप में कुछ खास होता है जो बच्चे गणित, साईंस व अंग्रेजी में अच्छा नहीं कर पाते वे अन्य विषयों में दूसरे बच्चों से कहीं ज्यादा बेहतर होते हैं, कोई हिंदी में, कोई संस्कृत में तो कोई ड्राईंग व खेल- कूद आदि जैसे विषयों में बहुत रूचि लेते हैं।“
ऐसे ही बच्चों के लिए है कक्षा नौवीं से ही विषयों को चुनने की आजादी मिलती है जिसे सेकेंडरी स्टेज कहा गया है। कक्षा 9 से 12 तक के विद्यार्थी अब पहले की तरह कक्षा 11 से साइंस, कॉमर्स तथा आर्ट्स स्ट्रीम लेने के लिए बाध्य नहीं है, अब विद्यार्थियों को साइंस के साथ कॉमर्स का या फिर कॉमर्स के साथ आर्ट्स के विषय लेने की भी आजादी होगी।
वैसे यह चीज बहुत पहले होनी चाहिए थी आज भी यदि किसी से पूछा जाए कि आप क्या बनना चाहते थे तो 95 प्रतिशत का उतर यही होता है कि वह जो बनना चाहते थे वह नहीं बन पाए क्योंकि उस समय उनके इस तरह विषयों का चुनाव करने का विकल्प उपलब्ध नहीं था।
साल में दो बार परीक्षाएं करावाना, परीक्षाओं को वस्तुनिष्ठ और व्याख्त्मक श्रेणियों में विभाजित करने से बोर्ड परीक्षाओं के महत्व या कहें भय को कम करने की बात नई शिक्षा नीति करती है। परीक्षाओं में मुख्य जोर व्यवहारिक ज्ञान के परीक्षण पर होगा ताकि रट्टू तोता बनने की प्रवृत्ति खत्म हो। ज्यादा अंक लाने के दबाव के चलते कोचिंग से निर्भरता को ख़त्म करने की बात कही गई है। बच्चों की परफॉर्मेंस का आकलन स्वयं छात्र, सहपाठी और शिक्षक द्वारा तीन स्तरों पर किया जाएगा।
नई शिक्षा नीति में शिक्षा के अधिकार अधिनियम का दायरा अब 6 से 14 साल की बजाए बढ़कर 3 से 18 साल के बच्चों के लिए होगा अर्थात उनके लिए प्राथमिक, माध्यमिक और उत्तर माध्यमिक शिक्षा अनिवार्य हो गई है। पढ़ाई छोड़ चुके करीब दो करोड़ बच्चों को फिर से दाखिल करने की बात शिक्षा नीति करती है। नीति में आनलाईन शिक्षा की बात भी कही गई है।
नई शिक्षा नीति में उच्च शिक्षा को लचीला बनाया गया है। अब ग्रेजुएशन के पहले वर्ष में ही यदि कोई पढ़ाई छोड़ देता है तो उसे सर्टिफिकेट दिया जाएगा यदि वह दो साल पूरा करता है तो डिप्लोमा और तीन साल पूरा करने पर डिग्री दी जाएगी। नौकरी करने के इच्छुक युवाओं के लिए तीन वर्ष की डिग्री ही काफ़ी है जबकि उच्च शिक्षा और आगे शोध में जाने के लिए की चौथे साल का कोर्स करना होगा इसे ग्रेजुएशन माना जाएगा। दो वर्षीय एमए अब सिर्फ एक साल की होगी पीएचडी प्रवेश के लिए एम.फिल. को समाप्त कर दिया गया है। शिक्षा नीति में विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए भी दरवाजे खोलने का ज़िक्र है, इससे उच्च शिक्षा का स्तर बढ़ने की संभावना है। पहली बार कोई शिक्षा नीति शिक्षा पर जीडीपी के छह फीसदी परिव्यय करने की बात करती है।
आगामी दशकों में भारत दुनिया का सबसे युवा आबादी वाला देश होगा और इस युवा आबादी को बुनियादी शिक्षा से लेकर उच्चतर शिक्षा तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध करवाने पर ही देश का भविष्य निर्भर करेगा। नई शिक्षा नीति बेरोजगार तैयार नहीं करेगी, स्कूल में ही बच्चे को नौकरी के जरूरी प्रोफेशनल शिक्षा दी जाएगी। 12वीं तक की शिक्षा पूरी कर स्कूल से निकलने वाले हर बच्चे के पास कम से कम एक ऐसी स्किल जरूर होगी जो जरूरत पड़ने पर उसकी आजीविका का साधन बन सके। नई शिक्षा नीति को हर जगह व हर व्यक्ति ने सराहा है।
कुछ विद्वानों का मत है कि नई शिक्षा नीति इंडिया को भारत में बदलने की शक्ति बन सकती है लेकिन एक शिक्षक के नाते मेरा मानना है नई शिक्षा नीति इंडिया को भारत में बदलने तक ही सक्षम नहीं बल्कि यह भारत को विश्व गुरु बनाने की ओर ले जाएगी।
लेखक
राजेश वर्मा (मंडी)
शिक्षक, सदस्य टास्क फोर्स (हिमाचल) नई शिक्षा नीति।