शिमला टाइम
अस्पतालों में हवा की गुणवत्ता को लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है। स्वास्थ्य सेवाओं के पैरामेडिकल स्टाफ़ में से केवल 6 प्रतिशत कर्मचारी ही अस्पतालों में वायु गुणवत्ता बनाए रखने की कोशिश करते हैं, जबकि सिर्फ़ 10 प्रतिशत को ही एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) से संबंधित कोई प्रशिक्षण मिला है। यह तथ्य राज्य फॉरेंसिक विज्ञान संस्थान जुन्गा(शिमला) में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन ‘एडवांस्ड फ्रंटियर्स इन फॉरेंसिक साइंस एंड एनवायर्नमेंटल सस्टेनेबिलिटी (AFSES-2025) के दौरान उजागर हुआ।
यह अध्ययन स्वास्थ्य खंड सायरी, सोलन के ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर (पब्लिक हेल्थ स्पेशलिस्ट) डॉ. अजय सिंह ने प्रस्तुत किया। उनका शोध-पत्र “केयर फॉर एयर : हेल्थ ब्लॉक सायरी के स्वास्थ्यकर्मियों में पर्यावरणीय जागरूकता का मूल्यांकन” शीर्षक से सम्मेलन में प्रस्तुत किया गया।
अध्ययन में सोलन ज़िले के पाँच अस्पतालों के 16 डॉक्टरों और 28 पैरामेडिकल स्टाफ़ को शामिल किया गया था। यह सर्वे टेलीफोनिक रूप से किया गया, जिसमें स्वास्थ्यकर्मियों के बीच वायु प्रदूषण के ज्ञान, दृष्टिकोण और व्यवहार का आकलन किया गया।
डॉ. सिंह ने बताया कि यद्यपि सभी डॉक्टरों और पैरामेडिकल कर्मचारियों को वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य पर असर की जानकारी थी लेकिन तकनीकी पहलुओं जैसे कि एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) या एयर चेंज प्रति घंटा की जानकारी बहुत कम लोगों को थी। “अस्पतालों में वायु गुणवत्ता की निगरानी करने वाला कोई नहीं है। अधिकांश अस्पतालों में खिड़कियाँ बंद रहती हैं और क्रॉस-वेंटिलेशन की कोई आदत नहीं है,” उन्होंने वहाँ कहा।
अध्ययन के अनुसार, केवल आधे स्वास्थ्यकर्मी ही अस्पतालों में खिड़कियाँ खुली रखने जैसे सरल कदम अपनाते हैं। वहीं केवल 18 प्रतिशत डॉक्टरों और 50 प्रतिशत पैरामेडिकल स्टाफ़ ने बताया कि उन्होंने कभी वायु गुणवत्ता पर सूचना, शिक्षा और संचार (IEC) सामग्री अस्पतालों में देखी है।
डॉ. सिंह ने कहा कि यह स्थिति गंभीर है क्योंकि स्वास्थ्य कर्मी ही वे लोग हैं जो रोगियों और जनता को पर्यावरणीय स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देते हैं। अगर उन्हें ही वायु गुणवत्ता की सही जानकारी और प्रशिक्षण न हो, तो यह जन-स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बन सकता है।
उन्होंने सुझाव दिया कि सभी स्वास्थ्य कर्मियों के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन पर अनिवार्य प्रशिक्षण आयोजित किये जाएं, अस्पतालों में नियमित वायु गुणवत्ता निगरानी की व्यवस्था की जाए और IEC सामग्री को प्रमुख स्थानों पर प्रदर्शित करना अनिवार्य किया जाए।
यह अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के फॉरेंसिक साइंस एवं पर्यावरण विज्ञान विभागों द्वारा निदेशालय फॉरेंसिक सर्विसेज, जुन्गा(शिमला) के सहयोग से आयोजित किया गया। सम्मेलन में देशभर के वैज्ञानिकों, पर्यावरण विशेषज्ञों और चिकित्सा अधिकारियों ने भाग लिया और पर्यावरणीय स्थिरता एवं स्वास्थ्य पर उभरती चुनौतियों पर चर्चा की।
डॉ. अजय सिंह के इस शोध-पत्र ने यह स्पष्ट किया कि अस्पतालों के भीतर की हवा भी बाहरी प्रदूषण जितनी खतरनाक हो सकती है, अगर स्वास्थ्य कर्मी स्वयं इसमें सुधार की भूमिका न निभाएँ।











