‘कन्नी कॉटेज’ कभी तांगे पर विलायती डाक आती थी यहां

सीमा मोहन, शिमला टाइम

शिमला स्कैंडल प्वाइंट से चंद कदमों की दूरी पर स्थित जनरल पोस्ट ऑफिस बिल्डिंग का निर्माण 1883 में हुआ। कन्नी कॉटेज के नाम से यहां डाकघर खुला, जिसमें विलायती डाक आती थी। खासियत यह थी कि विलायती डाक आते ही डाक घर पर लाल झंडा लहराया जाता था। इससे संकेत मिलता था कि कि डाक आ गई है और ब्रिटिश अफसर अपने नौकरों का यहां भेज अपनी डाक मंगवा लेते थे। डाक से भी केवल चिटठी, पत्र नहीं आते थे, मैगज़ीन, अखबारें, कपड़े व अन्य आवश्यक चीज़ें भी इसके माध्यम से पहुचती थीं। जब तक शिमला में रेलगाड़ी नहीं आई थी। तब तक कालका से शिमला तक तांगे पर ही डाक लाई जाती थी। कालका से शिमला तक तीन दफा तांगे के घोड़े बदले जाते थे। मेल तांगे पोस्ट ऑफिस के बाहर आकर खड़े होते थे। बड़ोग व क्यारी स्टेशन थे, जहां कालका से चल रहे घोड़ों को बड़ोग व बड़ोग से चले घोड़ों को आराम देने के लिए क्यारी जगह पर बदला जाता था। जहां पर डाक बंगला भी था। जैसे ही रेलगाड़ी आनी शुरू हुई तो रेलवे स्टेशन से रिक्शा में डाक को शिमला डाक ऑफिस तक पहुंचाना शुरू किया गया। वर्तमान में जनरल पोस्ट ऑफिस से डाक सेवाएं चल रही है।

कभी दर्जी की दुकान हुआ करती थी यहां….

हैरिटेज घोषित हो चुकी इस इमारत के स्थान पर कभी दर्जी की दुकान हुआ करती थी। मूल रूप से कन्नी लॉज के नाम का एक घर, जिसे यूरोपियन टेलर इंगलबर्ग एंड कंपनी के मालिक पिटरसन ने खरीदा था। दर्जी की दुकान के साथ एक गिरिजा घर बनाया गया था। कपड़ों की सिलाई का काम बंद होने के बाद इसी इमारत में कुछ समय शिमला बैंक भी रहा, जिसके मैनेजर पिटरसन ही थे। जिसके बाद 1883 में जनरल पोस्ट ऑफिस बिल्डिंग का निर्माण हुआ।

शिमला पोस्ट ऑफिस में एफ डल्टन पहले ब्रिटिश पोस्ट मास्टर थे, जबकि दिसंबर 1946 में आखिरी ब्रिटिश पोस्ट मास्टर एलजी पिगटन ने कार्यभार छोड़ा। पहली जनवरी 1947 को एके हजारी ने इस ऑफिस में बतौर पहले भारतीय पोस्ट मास्टर संभाला। 1972 में जीपीओ आग की चपेट में भी आया। बताते हैं कि उस समय स्टाफ के लोगों ने खिड़कियों से जरूरी दस्तावेज, फाइल व कैश बॉक्स बाहर फेंक दिए थे। आग से जहां -जहां नुकसान हुआ उसकी मरम्मत कर दी गई। 1992 में इस इमारत को हैरिटेज का दर्जा मिला। यह जानकारी जाने माने इतिहासकार राजा भसीन से प्राप्त की गई है।

इस शैली से बनी है ये ऐतिहासिक इमारत

न्यू टयूडर व स्विस-बेवेरियन शैली से निर्मित इस इमारत में धज्जी व पत्थर का इस्तेमाल हुआ है। लकड़ी की धज्जियां पिल्लर की तरह इस्तेमाल की गई है। जो नट बोल्ट से जुड़ी है आज भी देखी जा सकती है। 1905 का भूकंप भी इस इमारत ने सहन किया है। इस भवन की खास बात यह है कि लकड़ी के पिल्लर नट बोल्ट से जुड़े हैं, जिसके चलते इमारत का पूरा सांचा लचीला है और भूंकप का इस पर असर नहीं पड़ता है। तीन मंजिला इस इमारत में 6 होलो पिल्लर यानि लकड़ी के छह चौड़े-चौड़े पिल्लर हैं, जिन पिल्लर में ही चिमनी है, ब्रिटिश समय में बेसमेंट में इस चिमनी में आग जलाई जाती थी और जिससे पूरी इमारत के कमरे गर्म हो जाते थे। वर्तमान में ये चौड़े पिल्लर तो हैं लेकिन चिमनी चिनाई कर बंद कर दी गई है।

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