सीमा मोहन, शिमला टाइम
इंग्लैंड के माफिक शिमला की आबोहवा को देखते हुए ब्रिटिश अफसरों का दिल ऐसा पसीजा कि गर्मियों की छुटिटयों के लिए पूरी दुनिया में यही स्थान अच्छा लगा। मन माफिक वातावरण मिलने पर एक अंग्रेज अफसर ने सबसे पहला पक्का मकान बनाया। जिसके बाद यहां अंग्रेजों के आने का सिलसिला थमा नहीं और एक के बाद एक नई से नई शैली से शिमला में घरों का निर्माण ब्रिटिश करते गए। कैनेडी हाउस शिमला का ऐसा पहला घर रहा है जो अंग्रेजों ने बनाया था।
अग्रेजों की बनाई इस इमारत में अब वो महकमा चलता है, जिसका काम ही नए भवनों को तराशना है। विधानसभा गेट के सामने ‘वैली साइड’ स्थित कैनेडी कॉटेज आज भी ब्रिटिशकालीन इतिहास को संजोये है। हालांकि एक बार ये आग की चपेट में भी आ चुका है। कैनेडी हाउस तब बना था, जब गर्मियां शुरू होते ही छुट्टियां बिताने अफसर इंग्लैंड के चक्कर पर जाते थे। काम के बहाने जैसे-जैसे ब्रिटिश अफसरों के शिमला के लिए दौरे बढ़े तो वहां की प्रकृति हूबहू इंग्लैंड की तरह होने से उनका मन यहां रमने लगा।
पढ़ें कैनेडी हाउस से जुड़ा इतिहास…..
साल 1804 में जब एंग्लो गोरखा युद्ध शुरू हुआ, तो अंग्रेजों का ध्यान पहाड़ी क्षेत्र शिमला की ओर गया। हालांकि इससे पूर्व जंगल का क्षेत्र होने के कारण इसे अनदेखा किया जाता रहा। शिमला के जाने माने इतिहासकार राजा भसीन के मुताबिक युद्ध के कारण साल 1819 में हिल स्टेट के असिस्टेंट पॉलीटिक्ल एजेंट लेफ्टिनेंट रॉस शिमला आए। उस समय कैनेडी कॉटेज के स्थान पर लकड़ी का आवास हुआ करता था। इनके बाद जब दूसरे एजेंट लेफ्टिनेंट चार्ल्स परएट कैनेडी शिमला आए तो उन्हें यहां का वातावरण इंग्लैंड की तरह लगने लगा और 1822 में उन्होंने कैनेडी हाउस का निर्माण करवायां उसके साथ ही बनाया कॉटेज जिसमें खासकर ब्रिटिश के अतिथि ठहरा करते थे। वर्तमान में भी अस्तित्व में है और यहां केंद्रीय लोक निर्माण विभाग का कार्यालय चल रहा है। 1828 में ब्रिटिश कंमाडर इन चीफ लॉर्ड कांबरमेयर जब पहली बार शिमला आए तो उन्होंने शिमला के कैनेडी हाउस को अपना हेडक्वाटर बनाया। साथ ही कैनेडी हाउस भारत के एक ओर कंमाडर इन चीफ जनरल सर ऑथर पावर पालमर का भी जन्म स्थल रहा हैं 1870 में कैनेडी हाउस मेजर एसबी गॉड की संपति थी लेकिन बाद में कच्छ बेहर के महाराजा ने इसे अपने नियंत्रण में लिया। इसके बाद भारत सरकार ने इसे महाराजा से एक लाख 20 हजार भारतीय मुद्रा में खरीद लिया। लंबे समय बाद इस स्थान पर एक शानदार टेनिस कोर्ट बनाया गया। जब गोरखों से चल रहा युद्ध समाप्त हुआ तो म्यूनिशन बोर्ड ने इसका नाम बदल कर अंकल टॉम कैबिन रख दिया। भारत सरकार के मौसम विभाग ने भी इस इमारत में अपना कार्यालय स्थापित किया था। 19 शताब्दी के अंतिम दौर 1898 में पंजाब के जाने माने लेखक एसएस थॉर्बन भी कैनेडी हाउस में रहे। जिन्होंने उस दौर में ब्रिटिश सरकार की नीतियों पर अपने लेखन से कड़ा प्रहार किया। जबकि इससे पूर्व 1830 में कैनेडी हाउस में रह चुके कर्नल एसएच माउंटेन ने अपनी किताब में लॉर्ड एंड लैडी डल्हौजी का जिक्र किया था। जिन्होंने एसएच माउंटेन का पहाड़ों की रानी में शानदार स्वागत किया।
इतिहास बयां करता अब केवल कैनेडी कॉटेज ही शेष
वर्तमान में हिमाचल विधानसभा के मुख्य द्वार के ठीक सामने महज कॉटेज ही शेष है, अन्य भवन का हिस्सा आग की चपेट में आ गया था, जिसका पुनर्निर्माण हुआ है। कैनेडी कॉटेज की दो मंजिला इमारत में अब केंद्रीय लोक निर्माण विभाग का कार्यालय है। इसमें 20 से अधिक कमरें है, मुख्य प्रवेश द्वार के साथ ही उच्च अधिकारी बैठते है। सीढ़ियों के दोनों किनारे खुबसूरत लकड़ी से बनी रेलिंग, फर्श व छत भी इस तरह नकाशी गई है। आधी-आधी दीवारों पर टायलें लगी हैं। शीर्ष मंजिल जो मुख्य भवन का मुख्य प्रवेश द्वार है, अंदर से इसकी दीवारों, छत व फर्श पर पुरानी शैली में ही लकड़ी से कार्य किया गया है, जबकि नीचे की मंजिल में कमरों के दरवाजे पुरानी शैली के ही है, आधी दीवार पर तो टायलें लगी है लेकिन उससे ऊपर दीवार व धज्जियां देखें तो अब भी इतिहास बयां करते हैं।