ऐसी कौन सी जगह जहां ‘श्रीराम’ का नाम नहीं

शिमला टाइम

मुझे याद है जब पूरे देश में मार्च माह में एकसाथ लॉकडाउन लगा तो लोगों के मनोरंजन व उन्हें अवसाद से बचाने के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा दूरदर्शन के माध्यम से रामायण का 33 वर्षों बाद पुनः प्रसारण शुरू किया गया। हमारे बीच में एक पीढ़ी ऐसी भी है जिसे पहली बार टेलीविजन के माध्यम से रामायण और श्रीराम के बारे में बहुत कुछ ऐसा पता चला जिससे वे अभी तक अनभिज्ञ थी। इसी पीढ़ी में मेरे बच्चे भी आते हैं, एक दिन हम सपरिवार टेलीविजन पर रामायण धारावाहिक देख रहे थे तभी बच्चों ने पूछा कि पापा ये राम कौन हैं? तो मैंने उन्हें बताया कि ये वे हैं जो सबके हैं और सबमें हैं, तुम में भी, मुझ में भी, हमारे घर में, गांव में, देश में, पूरे संसार में हर कोने व हर चीज में राम हैं। जिनकी हम पूजा करते हैं ये वही भगवान श्रीराम हैं। बच्चों की अगली जिज्ञासा थी कि टेलीविजन में जो अयोध्या दिखाई दे रही है, क्या श्रीराम जी का अयोध्या में आज भी ऐसा ‘घर’ है? अब मैं निशब्द था, मैंने उन्हें यह तो बताया कि हां श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या नगरी हमारे ही देश में है लेकिन यह बताने में झिझक रहा था कि उनका घर अर्थात मंदिर है या नहीं?  क्योंकि यदि मैं यह कहूं कि नहीं वहां तो बाबरी मस्जिद है, तो मेरा यह उत्तर बच्चों की नजरों में मुझे ही झूठा साबित कर देता है, वह सोचेंगे कि जब श्रीराम का कोई जन्मस्थान व घर ही नहीं तो वह कैसे भगवान् हुए अर्थात वे तो काल्पनिक हैं, उनसे बड़ा तो बाबर था जिसकी वहां मस्जिद थी। जबकि सभी को पता है बाबर एक मुगल शासक रहा है न कि किसी के लिए पूजनीय, 1528 में बाबर के एक सूबेदार मीरबाकी ने बाबरी मस्जिद बनवाई थी, इसका एकमात्र उद्देश्य हिंदू धर्म व संस्कृति को तहस नहस करना था, इसीलिए राम मंदिर व अयोध्या में श्रीराम से जुड़ी चीजों को नष्ट किया गया जिसके साक्ष्य किसी से भी छिपे नहीं। नमाज़ अदा करने के लिए मस्जिद कहीं भी बनाई जा सकती है, लेकिन राम की अयोध्या कहीं और नहीं बनायी जा सकती।
हम अपनी जन्म भूमि भी उसी जगह को मानते हैं जहां हमारा जन्म हुआ हो, चाहे-अनचाहे हम अपना घर व स्थान तो बदल सकते हैं लेकिन जन्मस्थली नहीं बदल सकते, वह जीवन क्या हमारी मृत्यु के बाद भी हमारे साथ जुड़ी रहती है। खैर बच्चों को मैंने बताया कि एक विवाद के चलते अभी तक राम मंदिर का निर्माण नहीं हो पाया था परंतु लगभग 9 महीने पहले माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या विवाद को ख़त्म करते हुए राम मंदिर निर्माण के पक्ष में अपना फैसला सुनाया, बच्चों के साथ हुई यह बातचीत चार महीने पहले की थी लेकिन मुझे और बच्चों को यह मालूम नहीं था कि लगभग चार माह बाद 5 अगस्त 2020 को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भूमि पूजन करने के साथ ही राम मंदिर बनाने की शुरुआत हो जाएगी। मैं अपने बच्चों संग इस भव्य व ऐतिहासिक आयोजन को घर में बैठ कर टेलीविजन पर लाईव देख रहा हूं और इन्हीं बच्चों की बात ने मुझे पुनः निःशब्द कर दिया जब बच्चों ने कहा पापा आज से भगवान श्रीराम का घर बनना शुरू हो गया है न? और क्या आज से अयोध्या में वैसा ही भव्य व सुंदर मंदिर बनेगा जैसा हमनें टेलीविजन में रामायण धारावाहिक में देखा था। मैंने इनकी बात का उतर देते हुए कहा कि धारावाहिक क्या? बच्चो वहां तो ऐसा भव्य मंदिर बनेगा जो देश ही नहीं पूरे विश्व के लिए एक अमुल्य धरोहर होगी। यह दिन भारतीय समाज एवं संस्कृति में ऐतिहासिक व स्वर्णिम पन्नों में दर्ज होगा।
इस दिन के लिए हिंदू समुदाय ने लगभग 500 वर्षों तक एक लंबा संघर्ष किया। एक पीढ़ी ऐसी रही जिसने रामलला के अस्तित्व के लिए संघर्ष किया लेकिन आज वह इस दुनिया में नहीं। एक पीढ़ी ऐसी है जो अयोध्या आंदोलन के संघर्ष की सूत्रधार बनी आज इस भव्य आयोजन की गवाह भी बनी। एक पीढ़ी मेरी तरह भी है जिसने रामजन्मभूमि आंदोलन में भले ही सक्रिय भूमिका न निभाई हो लेकिन उसके दिल में एक हिंदू होने के नाते कुंठाएं भी पनपती थी कि क्या कभी अयोध्या विवाद हल हो पाएगा? क्या कभी वहां मंदिर बन पाएगा? क्या रामलला को भी छत मिल पाएगी? क्या सबके राम, सबमें राम के भी सभी बन पाएंगे? एक पीढ़ी ऐसी है जिसने अयोध्या आंदोलन को न देखा न सुना , लेकिन 5 अगस्त 2020 के दिन श्रीराम मंदिर के शिलान्यास के यादगार लम्हें इन पीढ़ियों के मन में श्रीराम की तरह बस जाएंगे। भले ही पीढ़ियों में अंतर हो लेकिन सभी ने एकसाथ देखा कि 1989 में दुनियाभर से श्रद्धालुओं द्वारा भेजी गई 2 लाख 75 हजार ईंटों में ‘जय श्रीराम’ लिखी हुईं 100 ईंटों में से 9 ईंटें अर्थात शिलाएं तथा 2000 पवित्र जगहों से लाई गई मिट्टी और 100 से ज्यादा नदियों से लाए गए जल से 40 मिनट तक चले ऐतिहासिक व स्वर्णिम भूमि पूजन को  देश ही नहीं पूरा विश्व घरों में टेलीविजन, मोबाइल व इंटेरनेट पर लाईव देख रहा था। यह ऐसा उत्सव रहा जिसके एक-एक पल से ह्रदय व शरीर में भावुकता के रोएँ खड़े हो रहे थे।


सबने यह भी देखा कि श्रीराम सभी हिंदुओं के ही भगवान् नहीं उन्हें तो मुस्लिम भी अपना मानते हैं मस्जिद के मुद्दई रहे इकबाल अंसारी ने भी अयोध्या में मंदिर शिलान्यास के अवसर पर कहा कि यह रामजी की ही इच्छा होगी कि मंदिर निर्माण का पहला आमंत्रण पत्र मुझे मिले और मैं भूमि पूजन के कार्यक्रम में भागीदार बनकर मंदिर निर्माण में सहभागी बन सकूं, उन्होंने कहा कि भगवान राम किसी एक के नहीं सारे समुदाय के हैं, मेरी तरह उन सबके लिए भी सौभाग्य की बात है जो रामजी की अयोध्या नगरी में रहते हैं। इस तरह आस्था की कोई सीमाएं नहीं होती, आस्था के अपने तर्क होते हैं, आस्था का अपना संविधान होता है और इसके नियम किसी के द्वारा किसी स्कूली किताब में न तो लिखे होते हैं न ही किसी के द्वारा पढ़ाए जाते हैं। यह तो संस्कृति व संस्कारों से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होते हैं। राम मंदिर निर्माण से भारतीय समाज अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ेगा भी और जोड़ेगा भी, इससे समाज का मानवता के नेतृत्वकर्ता के रूप में आर्थिक विकास के साथ-साथ सांस्कृतिक फैलाव भी होगा। जैसे ही अयोध्या में शिलान्यास की घड़ियां नजदीक आई देश में अब तक मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम पर अमर्यादित होती आई  राजनीति पर भी विराम लग गया। सत्तापक्ष ही नहीं कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने भी राम का गुणगान करना शुरू कर दिया। अब सभी श्रीराम को अपना मानने लगे हैं, श्रीराम की शिक्षा भी यही है, वे कट्टरता नहीं बल्कि अपनत्व व भातृव का बोध कराती है जो भारतीय संस्कारों व संस्कृति की पहचान है।

लेखक

राजेश वर्मा
मंडी, हिमाचल प्रदेश


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