गांधी जयंती विशेष- शिमला में बापू की यात्राएं, क्रांतिकारियों के साथ बैठक का वो कक्ष जिसके हर दिशा में खुलते थे दरवाज़े

सीमा मोहन, शिमला टाइम

सत्य, अहिंसा और शांति के पथ पर चलने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ देश मे ऐसी अलख जगाई की 1947 को अंग्रेजों को भारत छोड़ना ही पड़ा। यह अलग बात है कि उनका सहयोग शांति पथ पर चलने वालों के साथ ही चन्द्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव , बटुकेश्वर दत्त जैसे उन सुरमाओं ने भी दिया जो कहते थे कि बिना लड़े आज़ादी नहीं मिल सकती। शांति और क्रांति की लाखों देश भक्तों की बदौलत हम चैन और सुकून की ज़िंदगी जी रहे हैं। 2 अक्टूबर का दिन हर वर्ष महात्मा गांधी की आज़ादी की लड़ाई और उनके जीवन मूल्यों और आदर्शों के पथ पर अग्रसर होने का दिन है। महात्मा गांधी ने समूचा जीवन राष्ट्र को समर्पित किया । देश, विदेश में यात्राएं की और लोगों को स्वाधीनता संग्राम के लिए प्रेरित और उत्साहित किया। क्योंकि हुकूमत शिमला से चलती थी इसलिए कई बार वह शिमला भी आए। अंग्रेज अफसरों को देश छोड़ने के लिए मनाया और स्वतंत्रता सैनानियों का मार्गदर्शन किया। आइए जानते है महात्मा गांधी की शिमला से जुड़ी यादों के बारे में।

शांति कुटिया का वो कमरा जिसकी चारों दिशा में थे दरवाज़े

महात्मा गांधी की क्रांतिकारियों से होने वाली बैठकों में भय रहता था कि कभी कोई ब्रिटिश अफसर या सिपाही न आ धमके। इसके लिए खासकर शिमला स्थित शांति कुटिया में ऐसे मौकों का दौर चलता था। गांधी के शिमला आगमन पर शांति कुटिया में भी रणनीति उस कमरे में तैयार की जाती थी, जिसमें चार दरवाजे हैं। चार दरवाजे भी ऐसे जो चारों दिशाओं को खुलते थे। कभी कोई विकट परिस्थिति लगती तो महात्मा गांधी व क्रांतिकारी इनमें से किसी एक से निकल जाते। शिमला के चक्कर स्थित शांति कुटीर के नाम से जानी जाने वाली इस इमारत की एक मंजिल अब तक हुबहू वैसी की वैसी ही है। चार दरवाजे वाला यह कमरा अभी देखा जा सकता है। फर्क सिर्फ इतना कि अब यहां गुप्त बैठकें तो नहीं लेकिन परिवार बसर करते है और चारों में से केवल एक दरवाजा ही इस्तेमाल हो रहा है। पहली इस कुटिया के पिछली तरफ खुलने वाले दरवाजे की ओर बड़ा मैदान था, दाएं बाएं भी खुली जगह थी। एक दरवाजा भीतर कॉरिडोर से होकर जाता है। कहते है कि यहां सबसे पहले साधु संत रहते थे। यह भी माना जाता है कि पीछे की तरफ ग्राउंड में पांच देवदार के पेड़ थे, जो साधुओं की समाधि थी। हालांकि अब यह कुटिया बड़े-बड़े फ्लैट से घिर चुकी है।

राय बहादुर मोहनलाल के बंगले पर भी रूके थे

महात्मा गांधी पहली बार शिमला मदन मोहन मालवीय और लाला लाजपत राय के साथ 12 मई 1921 को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड रीडिंग से मिलने आए थे। तो वह जाखू स्थित राय बहादुर मोहनलाल के बंगले पर भी रूके थे, जहां से रिक्शा लेकर सीधे वायस रीगल लॉज पहुंचना आसान रहता था। 1931 में वायसराय लॉर्ड विलिंग्टन से मिलने भी आए थे। इसके बाद इमरसन से मिलने केक लिए भी वल्लभ भाई पटेल और जवाहरलाल नेहरू के साथ गांधी पहुंचे थे। कालका-शिमला रेल से भी महात्मा गांधी ने 1921 में यात्रा की थी।

मनोर विला गांधी का पंसदीदा ठिकाना

राजकुमारी अमृत कौर का घर मैनोर विला महात्मा गांधी का शिमला आने का पंसदीदा ठिकानों में से था। जहां वर्तमान में भी गांधी के बिस्तर, कुर्सी, किताबें, फर्नीचर, सहजे हुए मिलेंगे। शिमला दौरों के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अधिकांश समय यहीं बिताया। साल 1931 से 1946 तक वायसरॉय लॉज में कैबिनेट व कई समझौतों को लेकर हुई बैठकों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए इसी मकान से रवाना होते थे। कई बार इसी भवन की बालकनी से गांधी उनसे मिलने आई जनता को संबोधित करते। समरहिल स्थित कपूरथला के महाराजा हरनाम सिंह की बेटी राजकुमारी अमृत कौर का कभी यह आवास अब अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) का गेस्ट हाउस है। इसके अतिरिक्त जाखू का फायर ग्रोव महात्मा गांधी की शिमला यात्राओं का इतिहास खुद में समेटे हुए है। हां, यह बात अलग है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान केवल धोती पहनने वाले बापू यहां की सर्दी की वजह से शिमला को पसंद नहीं करते थे। ठंड के कारण उन्हें शिमला की वादियां कम ही पसंद आती थी।

इतिहासकार स्व. एस आर मेहरोत्रा एक मात्र ऐसे शख्स थे, जिन्होंने बापू से जुड़ी हर यात्राओं को विवरण तारीखों के साथ रिकॉर्ड में दर्ज रखा, यही वजह है कि बापू की यात्राओं को लेकर कई बार असंमजस की स्थिति भी रहती है लेकिन प्रो. मेहरोत्रा से प्राप्त रिकॉर्ड को ही सही एवं सटीक माना जाता है।

वो तारीखें, जब-जब शिमला आए महात्मा गांधी

12 मई, 1921

11 मई 1931 से 17 मई 1931

15 जुलाई 1931 से 22 जुलाई 1931

25 अगस्त 1931 से 27 अगस्त 1931

4 सितंबर, 1939

26 सितंबर, 1939

29 जून, 1940

27 दिसंबर 1940 से 30 दिसंबर 1940

23 जून, 1945 से 17 जुलाई 1945

2 मई 1946 से 14 मई 1946

ईदगाह व गांधी ग्राउंउ मे किया था संबोधित, आंजी भी गए थे

जब महात्मा गांधी तत्कालीन वायसराय से मिलने शिमला आए थे तो उस समय उन्होंने ईदगाह में रैली को भी संबोधित किया था। प्रजामंडल आंदोलन के तहत ईदगाह मैदान की जनसभा के बाद गांधी समरहिल के साथ लगते ग्रामीण क्षेत्र चायली में भी गए थे, जहां एक छोटे मैदान में लोगों से वार्तालाप हुआ था। इसे लोग कुछ अरसा पहले तक गांधी ग्राउंड के नाम से ही जानते थे। अब इस स्थान पर पंचायत का सामुदायिक भवन बनाया गया है। महात्मा गांधी इस क्षेत्र के साथ सटे आंजी गांव में भी गए थे।

गांधी का शिमला का आने का उद्देश्य

  • वायसराय से भेंट। ईदगाह मैदान में जनसभा को संबोधित किया।
  • भारतीय स्वतंत्रता सैनानियों व अंग्रेज सरकार के मध्य अस्थायी शांति संबंधी धाराओं का अंग्रेज सरकार की ओर से उल्लंघन करने पर लॉर्ड विलिंग्टन से चर्चा।
  • वायसराय विलिंग्टन से चर्चा करने के लिए।
  • वायसराय से बातचीत व नमक कानून पर जॉर्ज सुस्टर से चर्चा।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के संदर्भ में भारतीय पक्ष प्रस्तुत करने के लिए।
  • वायसराय को अवगत करवाने के लिए कि युद्ध भारत के लोगों पर थोपा गया।
  • वेवल प्लान पर शिमला कांफ्रेस जिसे सर्वदलीय बैठक के नाम से जाना जाता है, में भाग लेने आए।
  • कैनिबेट मिशन सम्मेलन में भाग लिया, जिसमें क्रिप्स प्रस्ताव पर चर्चा की।

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