अंदर की बात- “साहब की हेकड़ी- उस सास से भी बुरी”…!

शिमला टाइम

हिमाचल सरकार में एक अधिकारी खुद को विभाग का मालिक मान बैठे हैं। इस अफसर की हेकड़ी के हर ओर चर्चे ही चर्चे है। दबी जुबान में लोग कहते है कि “अरे भई उसका तो नाम मत लो”। साहब का रौब ऐसा कि मीटिंग शुरू होती है तो किसी को बोलने नहीं देते बाबा जी के प्रवचन शुरू होते है। अगर कोई बोल दे तो 18वीं सदी की सास के समान सारा खाना पानी लेकर उसके सर पर सवार हो जाते हैं । आदत ऐसी कि चुगल खोर महिला के समान अपने जासूसों से एक -एक कर्मचारी का सारा लेखा जोखा अपने बही खाते में दर्ज  कर रखा है। हो भी क्यों न कुछ रिश्तेदार, कुछ घर परिवार और कुछ खास सब पास-पास उसी कार्यालय में सेवादार जो है। बताते तो ये भी हैं कि आज तक जनाब मलाईदार पदों पर रहे हैं, ‘मलाई चट उस पद से हट’ जनाब का ये फॉर्मूला खूब काम कर रहा है। सुना तो यहां तक है कि जनाब अपने खास लोगों को नौकरियां लगाने के लिए भी मशहूर है। अब उसमें भी मलाई मिलती है या नहीं ये तो पता नहीं। पर बताते ये भी है कि साहब के शिमला में दो तीन आलीशान बंगले भी है बाहर का पता नहीं। और हां यह बात भी अलग है कि विजिलेंस में भी जनाब की शिकायतों पर शिकायतें है। फिर भी “बिना बाल वाले एक आका” उनके माई बाप बनकर उनकी हर मुसीबत में तारण हार बनकर उनकी डूबती नैया को वैतरणी के पार लगा देते हैं।

अब किस्सा वहां से शुरू हुआ जब साहब की किसी चुगलखोर ने चुगली डाली कि कर्मचारी तो आपके बारे में बहुत कुछ कहते है बस फिर क्या था बड़े साहब तो तैश में आए…. आव देखा न ताव…कर्मचारियों को सामने हाजिर करवाया और सास बन कर बहुओं पर जैसे टूट पड़े। “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे बारे में अनाप शनाप कहने की मेरे पास सबकी कुंडली है मैं मुंडी मरोड़ देता हूँ। मुझे पता है मेरी पीठ पीछे किसने क्या-क्या कहा….”  इस कदर अभद्रता तक पहुंच गए कि कहने लगे मुझे पता है तुम तो यहां जोड़ों में बैठते हो….। जो किसी को सुनना कभी गंवारा न था, पर साहब जो ठहरे सर झुकाए… कर्मचारी यूं ही बेइज्जत हो गए। महिला कर्मचारियों में तो अब रोष इस कद्र है कि सोचते हैं ऐसा काम ही न आये की फ़ाइल लेकर साहब के पास जाना पड़े। क्योंकि सिवाए तानों के इन साहब से कुछ नहीं मिलता। यह तो पुराने जमाने की उस सास से भी परे जिसने बहु के नाक में दम कर रखा होता है, वो भी बिना वजह। आज कल इस महकमें के कर्मचारी बस यही प्रार्थना करते हैं कि ऐसे साहब से तो तौबा -तौबा, भगवान बचाएं और कहीं और चले जाएं। बग़ावत के सुर फुट रहे हैं कि कब ये सास हमारा पिंड छोड़ कर किसी और के द्वार चली जाए और कुछ काम किया जाए। 

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